दहेज (लघु कथा) - झरना माथुर

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vivratidarpan.com - आज मनोरमा को लड़के वाले देखने आ रहे थे। घर में सुबह से ही तैयारियां चल रही थी। ओम प्रकाश शर्मा आज फिर चिंतित थे। "पता नहीं आज भी मेरी बेटी का रिश्ता हो पाएगा या नहीं।"  धूप में बैठी ओमप्रकाश की मां ओमप्रकाश से बार-बार पूछ रही थी, "क्या लड़का दहेज लेगा।"  ओम प्रकाश ने कहा, "मनोरमा का रंग कम है," तो देना ही पड़ेगा। इधर ओम प्रकाश की पत्नी सोच - सोच कर घबरा रही थी, कि मनोरमा की शादी के लिए वह दहेज कैसे जुटा पाएंगे?

मनोरमा उच्च शिक्षित थी और एक विद्यालय में शिक्षिका थी। मगर उसका रंग दबा हुआ था। जिस कारण उसकी शादी नहीं हो पा रही थी। शाम होते ही लड़के वाले मनोरमा को देखने आ गए। लड़के वालों की अच्छी खातिरदारी की गई। लड़का और लड़की को बैठाकर बातें कराई गई। कुछ देर बैठने के बाद लड़के वाले जाने के लिए कहने लगे। ओम प्रकाश ने हिचकिचाते हुए लड़के की मां से पूछा, "कि बहन जी कुछ बताया नहीं।"

लड़के की मां ने अपने लड़के की तरफ देखा और फिर ओमप्रकाश से बोली कि आपकी लड़की का रंग कुछ ज्यादा ही दबा हुआ है।

अगर आप मेरे लड़के के "एम०बी०ए० " कोर्स की फीस भर दे, तो हम शादी के बारे में सोच सकते है।

ये सुनकर वातावरण में सन्नाटा सा छा गया। लड़के वाले ओम प्रकाश से ये कहते हुए चले गए कि अगर आपको हमारी बात ठीक लगे, तो घर पे आ जाइएगा।

- झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड