दोहे - प्रियदर्शिनी पुष्पा
Jun 9, 2024, 22:48 IST
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जय-जय-जय श्री राम का , नारा है हर ओर ।
किंतु भ्रमित कुछ है अभी, बॅंधे स्वार्थ की डोर।।
जिनके उर उत्पात अब , मचा रहा दुर्गंध।
लिप्त पिपासा में अभी, लोलुपता मातंध।।
तब भी धोबी मंथरा, जैसे दुष्ट कुचाल।
मर्यादा अरु त्याग पर, करते कुटिल सवाल।।
पृष्ठों पर छूरी चला, ऐसे अनत प्रसंग।
आज अचंभित हैं न मन, देख दोमुहा रंग।।
- प्रियदर्शिनी पुष्पा, जमशेदपुर