दोहे - नीलकान्त

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रचा महोत्सव फाग ने, फागुन हुआ निहाल।

प्रीत रंग में सब रंगे, रंगी हुआ त्रिकाल।।

आशुतोष तुम खुश रहो, होना नहीं उदास।

बासंती युग आ गया,  दौड़ा तेरे पास।।

आनन्दी को छू रहा, उड़ता रंग गुलाल।

कोयल संग में गा रही, बैठ आम की डाल।।

हॅंसा करो तुम वैष्णवी, दुख हो जाए दूर।

पछुआ आई खेलने, आज गुलाबी धूर।।

शिवशंकर के नृत्य सा, जग नाचे हर रोज।

नीलकान्त तो बन गया, फिर से राजा भोज।।

- नीलकान्त सिंह नील, बेगूसराय, बिहार