दोहे - मधु शुक्ला

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पगड़ी जिसको हम कहें, उसके रंग तमाम।

मूल रूप से वस्त्र यह, ऊँचा रखता नाम।।

धारण करते लोग कुछ, मान इसे परिधान।

अपनी संस्कृति में इसे, कहें सदन की शान।।

मर्यादा  रक्षक  रही,  पगड़ी   की   पहचान।

सामाजिक परिवेश में, यह मानव की आन।।

सम्मानित व्यवहार कर, पायें हम सम्मान।

पगड़ी  हर  इंसान  को, देती है यह ज्ञान।।

मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश