दोहा (प्रेम) - अनिरुद्ध कुमार

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अइसन बोली मत कहीं, सुनते लागे तीर।

बेचैनी झकझोर दे, तनमन होखे पीर।१।

प्रेम हिया के मोह ले, जागे मन अनुराग।

बोल मीठ मनहर कहीं, जीवन गाये राग।२।

प्रेम सदा लागे बड़ा, प्रेम के ऊँचा मान।

प्रेम रतन धन जान लीं, प्रेम प्रीत के खान।३।

प्रेम धरा के जानबा, प्रेम जगाये आस।

नजर घुमाके देखलीं, चारो ओर प्रकाश।४।

प्रेम बिना सूना लगे, प्रेम धरा आधार।

हीतमीत में झाँकलीं, प्रेम हिया उदगार।५।

प्रेम प्रीत प्यारा लगे, प्रेम करीं गुनगान।

प्रेम बिना जीवन कहाँ, एकर सगरों मान।६।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड