धरती अंबर - डा० क्षमा कौशिक
Jan 12, 2024, 23:47 IST
| जैसे धरती का अंबर से,
जैसे विहगी का चंदा से।
जैसे सागर का लहरों से,
जैसे नदिया का तीरों से।
दूर भले हों,पास हैं फिर भी,
मिले हुए हैं,अलग हैं फिर भी।
इक दूजे को निरख़ रहे हैं,
इक दूजे को परख रहे हैं।
दूर भले हो जाये तन पर,
मन में सुर तो एक लगा है।
मन से मन का कोई रिश्ता,
बंधन में बंध नही सका है।
- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड