प्रियवर तुम हो अति विशेष - सविता मीरा
Apr 7, 2024, 23:36 IST
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न जाने वह यह सब
कर लेती थी कैसे?
तंगी भरे दिनों में भी
रख कंधे पर हाथ
निकाल देती थी पैसे|
देखता रहता अपपलक
शांत सौम्य थोड़ी कड़क,
पल्लू को खोंस कमर में
देखती जाती दूर तलक|
चँद दिनों में ही कैसे
गह लिया मुझको ऐसे
कैसे कर लेती हो तुम सखे
जैसे धमनी में रक्त बहे|
इतना समर्पण ऐसा अर्पण
सीमित संसाधनों मे भी
गृहस्थ का पूरा संचालन
अरु संचित भी कर लेती धन?
दौड़ा फिर रसोई घर
थी वो पसीने से तर बतर,
चूमा उसके मस्तक को
उसने लिया बाँहों में भर,
फिर फफक फफक कर,
गोद में उसके सर रखकर
मन हुआ हल्का ताजा तरीन
निकला जैसे इंद्रधनुष रंगीन
ऐसा संचालन, ऐसा निवेश
हर महिला होती अति विशेष|
हर महिला होती अति विशेष|
- सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर