कोर्ट तारीख़ (लघु कथा) - झरना माथुर

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vivratidarpan.com - आज फिर कोर्ट की तारीख थी। वर्षा आज अपने पिता के साथ कोर्ट जाने की तैयारी में लगी हुई थी। समझ में नहीं आता था, कि यह कैसे कब तक खत्म होगा? साल भर पहले ही तो उसका उसके पति सचिन के साथ विवाह हुआ था। मगर हालात ऐसे बने जो आज परिस्थितियॉ संबंध - विच्छेद की तरफ बढ़ने लगी।

ऐसी स्थिति आज क्यों बनी, गलती किसकी थी, "क्या उसे संबंध-विच्छेद कर लेना चाहिए" ? अगर कर लेती है, तो उसके बाद का उसका जीवन क्या होगा। समाज के भय से अपने पति के साथ दोबारा से जीने का प्रयास करना चाहिए? जिसको कर पाना आसान नहीं था।

वर्षा के पिता ने वर्षा  को गाड़ी में बैठने के लिए कहा। घर से कोर्ट तक की काफी दूरी थी। वर्षा पुरानी यादों में खो गई कि कैसे उसका एक वर्ष पूर्व  विवाह हुआ था। लेकिन सुहागरात वाले दिन ही उसके पति सचिन ने वर्षा से कुछ ऐसा कहा कि वर्षा का दिल टूट गया।

जिस रात के लिए लड़की सपने सजोती है उसी रात में उसका पति आकर उससे कहता है। मैं किसी और से प्यार करता हूं,मुझे  तुमसे विवाह घर वालो की जिद के कारण करना पड़ा। वर्षा कुछ नही कह सकी। सिर्फ उसकी आखों से आसूं बहते रहे।

अगली सुबह जब वर्षा ने ये बात अपनी सांसु मां को बताई तो सासु मां ने उसे समझाया कि, एक पत्नी सब कुछ कर सकती है। अपने पति को अपने प्यार में बांध सकती है। तुम अपने व्यवहार से सचिन को बदल दो। एक दिन सब ठीक हो जायेगा।

लेकिन वर्षा के सब कुछ करने के बाद भी सचिन का मन नहीं बदला। ये सब देखकर वर्षा के माता-पिता उसे घर ले आए। घर वालो की सलाह पे कोर्ट में केस कर दिया गया।

अचानक से कुछ शोर आने लगा। जिसे सुनकर वर्षा अपनी सोच से बाहर आई। तब तक वर्षा के पिता ने वर्षा से कहा कोर्ट आ गया है। तुम यही उतरो। मैं गाड़ी पार्क करके आता हूं।

वर्षा गाड़ी से उतर गई। उसके मन में यही मंथन होता रहा कि एक ऐसे व्यक्ति के साथ जीवन काटना खुद अपने आप से छलावा नही होगा...और शायद वर्षा इस छलावे के लिए तैयार नहीं थी। मन ही मन कुछ तय करते हुए वो कोर्ट की तरफ आगे बढ़ने लगी।

- झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड