दोहे - मधु शुकला

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जनमानस को प्रिय बहुत, प्रेमचंद के भाव।

भरती उनकी लेखनी, कुरीतियों के घाव।।

संघर्षों से जूझता, पूरी उम्र  किसान।

फिर भी कर्म न त्यागता, कहते तभी महान।।

कभी  सिनेमा  जागरण, का करता था काम।

फैलाकर अश्लीलता, आज  हुआ बदनाम।।

सेना के अनुचर नहीं, चुनते हैं आराम।

इसीलिए करता उन्हें, पूरा देश सलाम।।

– मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश