दोहे - मधु शुक्ला

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आया सावन झूम के, रिमझिम गिरे फुहार।।

वृक्षों को नहला रही, पानी की बौछार।।

खूब अभी बाजार में, महक रहे हैं आम।

सुलभ सभी के हेतु हैं, इनके ताजा दाम।।

नदी, सरोवर आजकल, बाँट रहे मुस्कान।

सावन उनको दे रहा, चिर परिचित पहचान।।

गाता अपने खेत में, हलधर मीठे गान।

जगा दिए हृद में कई, सावन ने अरमान।।

सावन में शिव की अधिक, होती जय जयकार।

भोले बाबा बाँटते, सबको खुशी अपार।।

 — मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश .