विवशता - अनिरुद्ध कुमार
Jul 27, 2022, 22:59 IST
| विवशता में पी रहें हाला,
मंहगी ने छीना निवाला।
सोंचो कैसे जी रहें लोग,
हर तरफ हो रहा घोटाला।
युवा बेकार मुख पे ताला,
आक्रोशित नैनों में ज्वाला।
विवशता में आज बेचारा,
भटके कौन देखने वाला।
भ्रष्टाचार का बोलबाला,
गोरा तन पर मन काला।
माया देखो बनी विवशता,
मन के अंदर कहाँ उजाला।।
सबका मालिक है रखवाला,
विवश नहीं वो जग रच डाला।
सम्हर सम्हर के पाँव बढ़ाना,
सबको देखे दीनदयाला।।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड