बैसवारी में मधुमासी भाव - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी
अब जाड़ु चला अपने घर का, मधुमासन कै दिन आय रहे।
कछु सिहरन प्रीति कै मन उपजै, सबके जियरा हुलसाय रहे।
अब तौ तिल-तिल दिन बाढ़ि रहें, रतियाँ नित-नित नित छोटि भयीं।
सँकरांति के बादि दिवाकर अब, सबहिन तन का गरमाय रहे।
सरसों, मटरी-चटरी फलतीं, खेत गेहूं कै लहराय रहे।
गुड़-खांड बनावै कै लाने, ऊँखन का रोज पेराय रहे।
महुआ-अँबिया कै बउर लदैं, सँग बेर-धतूर-मदार दिखें।
शिवरातिन का उपवास रखैं, घिउ-दूध-दही भी चढ़ाय रहे।
महुवन कै मादक गंध बड़ी, अब सबकै मन बउराय रहे।
अमराइ म छुपि कै कूकि रही, सुर कोकिल के मन भाय रहे।
सबकै ख्यातन मा झूमि रहीं, फसलैं मन का उमगावति हैं,
पइसा-कउड़ी घर मा अइहैं, दिन नीकि बसंत कै’ आय रहे।
सूरज दे’उता हर दिन तिनु-तिनु, उत्तर मा आ गरमाय रहे।
सरदी ते अइँठी द्याहन ते, सब आलस दूरि भगाय रहे।
सबकै तन-मन मा अब गरमी, भरि रोज रही फगुनाहट कै,
धुन ढोलक-झाँझ-मँजीरन पर, फगुआ-चैता मिलि गाय रहे।
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा/, उत्तर प्रदेश