छिन-छिन की मैं हूँ ऋणी मन के साहूकार - अनुराधा पाण्डेय

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पंथ भी तकना किसी का

प्रेम में कितना मधुर है।

बीतता हर एक क्षण ही,

तीव्र करता धड़कनों को।

मूर्त कर देती प्रतीक्षा,

पूर्व के आलिंगनों को।

सांस से लगता बँधा ज्यों..

आस-मय एकांत सुर है।

प्रेम में---

प्रीत का माधुर्य पाता,

चित सघन उन्माद में ही ।

लब्ध होता सुख विगत का,

सच कहूँ तो याद में ही।

नेह का चल-चित्र दिखता..

सांस जब होती विधुर है।

प्रेम में --

आदि झूठा,मध्य बौना

कृष्ण है परिणति प्रणय का।

है चरम जब देह भूले,

और हो परिणय हृदय का।

श्याम के मन का विरह में,

नृत्यमय होना ,विदुर है ।

पंथ भी तकना किसी का।

प्रेम में कितना मधुर है।

- अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली