छठ पर्व - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

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श्री दिवाकर को समर्पित पर्व छठ कितना सुहाना।

साँझ-प्रातः अर्घ्य देकर सूर्य को मन से मनाना।

चार  दिन पूजा करें जल में उतर कर लोग सब,

नद, सरोवर ताल से इन्सान का रिश्ता पुराना।

जोश श्रद्धा से निरंतरपर्व छठ का सब मनाएं।

नेह की बाती लगा कर दीप की माला सजाएं।

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पर्व जन जन का अनूठा प्रेम से इसको मनाते।

पूजते माता छठी को कठिन व्रत श्रद्धा दिखाते।

खाय और नहाय-खरना मुख्य इसके अंग हैं,

शुद्ध सात्विक भोज पकते साँझ को ही लोग खाते।

मातु छठ रवि के मनोहर प्रेम से सब गीत गाएं।

ध्यान करके सूर्य का छठ मातु को मस्तक नवाएं।

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व्रत रखें सब लोग दिन भर साँझ को पूजन करेंगे।

टोकरी में ठेकुआ, फल-फूल भर सिर पर धरेंगे।

हों खड़ें जल में सभी जन अर्घ्य देंगे भानु जी को,

हे प्रभाकर दें खुशी सब कष्ट जन-जन के हरेंगे।

संग में माता छठी की शुभ कहानी भी सुनाएं।

ध्यान करके सूर्य का छठ मातु को मस्तक नवाएं।

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तीन दिन तक की तपस्या पूर्ण उसको सब करेंगे।

भोर में ही अर्घ्य दे सम्मान में सब सिर झुकेंगे।

मातु छठ आशीष दें यह कामना मन में विराजे,

पर्व बारम्बार आये यह कथन सब से सुनेंगे।

छठ व्रती थाती अनूठी प्रेम से आगे बढ़ाएं।

नेह की बाती लगा कर दीप की माला सजाएं।

- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश