चौपाई छंद - मधु शुक्ला

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ऋतु वर्षा की बहुत सुहाती।

स्वप्न  हजारों  लेकर आती।।

आनन पर बौछार गिरे जब।

हो जाता रोमांचित मन तब।।

वर्षा   कीं   बौछारें   भू   पर।

आतीं हैं खुशियों को ले कर।।

खेत   ओढ़   लेते  हरियाली।

वृक्षों की छवि लगती प्यारी।।

सावन  कीं  बौछारें  आकर।

कहतीं  हैं  कानों  में  गाकर।।

प्रीति चुनरिया लेकर साजन।

आयेंगे  सखि  तेरे  आँगन।।

रिमझिम सावन कीं  बरसातें।

त्यौहारों   कीं   करतीं   बातें।।

बहन हृदय की बढ़ती धड़कन।

दस्तक  दे  जब   रक्षाबंधन।।

बिन  बौछार  न  वसुधा  गाये।

निधि खाद्यान्न न दुनियां पाये।।

जब  घन  बौछारों  को  लाता।

सकल जगत तब खुशी मनाता।।

— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश .