चौपाई छंद - मधु शुक्ला ​​​​​​​

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हम सब का जो भाग्य विधाता।

हमें सदा वह यह समझाता।।

न्याय नीति का पालन करना।

स्वार्थ, कपट, छल हृदय न रखना।।

सेवा, ममता, करुणा पावन।

त्याग, क्षमा होती मनभावन।।

जिस उर में रहता अपनापन।

कहलाता सार्थक वह जीवन।।

जान समझ जो लोग जगत में।

उलझे हैं मतलब के मत में।।

कर्म प्रणाली उनकी लखकर।

न्याय उन्हें  देता परमेश्वर।।

ज्ञात  विधाता  सर्वोपरि  है।

रक्षक जग का केवल हरि है।।

शरण नहीं क्यों उसकी गहते।

गर्व, अहं  का  नश्तर  सहते।।

 — मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश