बदलता समाज - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

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बढ़े विषमता और दूरियाँ, प्रतिदिन आज समाज में।

शिथिल हो रहे पंख आजकल, शक्ति नहीं परवाज में।

संदेहों के घेरे व्यापक, हर मानस को जकड़ रहे,

यत्नपूर्वक नहीं बदलने, दे इसको ताराज में।

समरसता के तंतु न उलझें, सब जन इतना ध्यान रखें।

बैर-भाव को करें न पोषित, गरल मान कर नहीं चखें।

समझ आपसी विकसित करके, बढ़ें सभी उन्नति पथ पर,

दोषारोपण से पहले सब, अपना अंतस स्वयं लखें।

अहं आज टकराते पग-पग, सबके मन अब रूखे हैं।

ताकत-दौलत खातिर अंधे, सब सत्ता के भूखे हैं।

तरह-तरह के भेद कराते, जाति-धर्म के खांचों में,

स्नेहिल दर्शाते खुद को, पर अंतस से सूखे हैं।

- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश