कारण और निवारण - जया भराडे बडोदकर

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vivratidarpan.com - राथा ने घर में सुदर बगीचा बना लिया है उस में अब खुशी के फुल खिलने लगे हैं कमी था वहाँ विरान खामोशी का कफन बस नहीं था तो वो सुकून जिसे उसने अपने संगी साथी सभी दोस्तों के साथ पाया था।

अब आज वो दु:खी दुनिया को भूल चुकी है,,। साल भर में उसने अपने पराये को भी पहचान लिया था,।

समय समय पर उसै वक्त नै बहुत कुछ सिखा दिया था। एक पल में राहुल की याद आने लगी वो हर एक क्षण बस राहुल के लिए ही जीवन जी रहीं थी, सुबह से पहले ही उठकर टिफिन की तैयारी में लग जाती थी। फिर राहुल का चाय नाश्ता ओर ओफिस बस इतना ही काम हो गया कि फिर अपने दोस्तों की किटी पार्टी गप-शप उनके साथ घूमने फिरने में सारा दिन बिता देती,। शाम तक राहुल के आने से पहले घर पहुँच जाती‌। रात को खाने के बाद फिर राहुल के साथ टहलने जरूर जाती। किस तरह उनकी जिदंगी राजी खुशी से गुजर रही थी कि वह अपना अकेले का एक असतित्व भी है ये भी भूल चुकी थी।

एकाएक दिन जैसे सब कुछ बिखर गया जब राहुल को हार्ट अटेक आ गया,उसे लगा की तब उसकी पूरी दुनिया ही खत्म हो गई।

थोडे़ दिन लोगों का आना जाना लगा रहा। फिर राहुल की याद हमैशा आने लगती। एक दिन सुबह सुबह ठ़डी ठ़डी हवा में घूमने निकल पडीं,। चारों ओर पक्षीयों  की मथुर आवाज फुलों की खुशबू ने उसे रोमांचित कर दिया था घूमते-घूमते वह ऐसी जगह पहुँच गई जहाँ छोटे-छोटे गरीब बच्चों का सकूल चल रहा था। उसके कदम वही रुक गयै। वहाँ जाकर उसको  जैसे उसकी मंजिल ही मिल गई। उसने अपना बचा हुआ शेष जीवन उन बच्चों के संग बिताने का निश्चय कर लिया। और उसके जीवन में नया सुकून मिलने लगा। घर के आंगन में खुशी के फुल खिलने लगे थे वो उन गरीब बच्चों की सैवा में अपना सब कुछ न्यौछावर  कर चुकीं थी,।

- जया भराडे बडोदकर, टाटा सिरीन, ठाने,  मुम्बई,महाराष्ट्र।