भाई - प्रतिभा जैन

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बरसों बाद खुशियों का दीदार हुआ,

फिर भी मुसीबतों का ढेर नहीं हुआ।

खुदा से शिकायत क्या करूं,

अपनो का साथ नसीब नहीं हुआ।

जिस प्यार की तलाश थी,

वो इश्क नाकाम हुआ।

भाई ने ही भाई को बेनाम किया,

राम को यूं ही भगवान नहीं माना,

भरत के लिए अपना राज कुर्बान किया।

- प्रतिभा जैन, टीकमगढ़,  मध्य प्रदेश