टूटते रिश्ते - सुनील गुप्ता

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टूट रहे

अब यहाँ रिश्ते नाते

चढ़ रहे भेंट अहम् को नित !

कहाँ तक करें बचाने की कोशिशें.....,

जब सभी अपने साधने में लगे हों स्वार्थ हित!1!

समय बड़ा

चल रहा है विकट

नहीं बचा है आपसी प्रेम सद्भाव !

किसे सुनाएं अपनी व्यथा दुःखड़ा कहानी..,

तेजी से बढ़ रहा आपसी संबंधों में तनाव !!2!!

बदलता समय

एकल परिवार का चलन

उसपे नित टूटते ये रिश्ते नाते  !

आज बन रहे हैं समस्याओं के सबब....,

और अवसाद घुटन में घिरे सभी यहाँ पाते !!3!!

आपसी मनमुटाव

दरकते रिश्तों की कहानी

बना क्रूर सच हरेक घर का  !

अब मत पूछो आपसी रिश्तों का हाल....,

स्वार्थ की आँधियों में उड़ चुका परिवार सबका!!4!!

टूटते रिश्ते

मानो उजड़ता हुआ गुलशन

बिन माली के सूखते संबंधों के पौधे  !

अब कौन भरेगा इनमें प्रेम विश्वास के रंग.....,

जब सगे संबंधी आ जाएं सभी को देने धोखे!5!

-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान