भाव समर्पण - भूपेन्द्र राघव

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भाव समर्पण लिए जो उतरे प्रेमसिंधु में पार हुए ।

लील गयीं मझधारें जब जब स्वार्थ के पतवार हुए ॥

निश्छल प्रेम मगन भीलनी ने

कुतर बेर जब परसे थे ।

कमलनयन के नयनों से

तब प्रेम के मोती बरसे थे ॥

ऐसे ही मोती की दौलत

सखा सुदामा ने पाई ।

नंगे पैर दौड़ गए कान्हा

खबर द्वार से जब आई ॥

प्रेम अनुभूति ह्रदय बेधती नयना अविरल धार हुए ।

प्रेम के आगे राम कृष्ण तक विवश हुए लाचार हुए ।

भाव समर्पण ............................

राधा मीरा हुईं बावरी

झलक प्रेम निज पाने को ।

आठों पहर खुलीं रहीं अखियाँ

मोहन के बस जाने को ॥

पुष्पहार में परिणित हो गई

प्रेम नजर विषधर माला ।

प्रेमातुर राधा ने जीवन

श्याम नाम में रंग डाला ॥

श्याम चूड़ियाँ बिंदी पायल श्याम ही सब श्रृंगार हुए ।

मीरा राधा श्याम सलौने निश्छल प्रेमाधार हुए ।

भाव समर्पण ............................

मद में आकर दक्ष पिता से

जब अपमानित रूद्र हुए ।

स्वाभिमान है प्रेम सात्विक

तब त्रिपुरारी क्रुद्ध हुए ॥

युगों युगों तक रहे घूमते

लाश प्रेम निज धर काँधे ।

काया मरती प्रेम ना मरता

प्रेम कोई कैसे बांधे ॥

अधीर हुए भोले भंडारी व्याकुल हो अंगार हुए ।

सुरभित कोमल प्रेम पुष्प तब तीखी धार कुठार हुए ।

भाव समर्पण ............................

- भूपेन्द्र राघव, खुर्जा, उत्तर प्रदेश