भजन - मधु शुक्ला

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शरण में आ गई प्रभु जी मुझे हर पल निभा लेना,

घिरी  हूँ  मोह, माया  में  हमारा  छल निभा लेना।

नहीं  है  साधना  का  ज्ञान मैं मति मूढ़ हूँ बिल्कुल,

कृपा कर आप यह अज्ञान का दलदल निभा लेना।

बुराई  में  रहा  रत  प्रभु नहीं गुण आपके गाये,

नहीं हूँ नीर गंगा का अपावन जल निभा लेना।

सुना  है  आपने  जग  में  हजारों  पातकी  तारे,

विनय स्वीकार कर प्रभु जी अकिंचन खल निभा लेना।

तभी  अज्ञान  तम  प्रभु जी हटे जब आप चाहेंगे,

नहीं अब 'मधु' तजेगी दर हमारा कल निभा लेना।

मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश