भागवत - सुनील गुप्ता
( 1 )" भा ", भाग
कहाँ जा रहा, रे मानव
तू भागकर, कहां पे जाएगा !
इस संसार में आया है तो.....,
प्रारब्ध कर्मों का फल, पाएगा !!
( 2 )" ग ", गति
कर्मों की चलती ही रहती
फ़िर-फिरके, आना यहां पड़ता !
करता चल रे, तू सत्कर्म यहां पे...,
यदि, मोक्ष पाना तू चाहता !!
( 3 )" व ", वरदहस्त
तू श्रीहरि का पा ले
आजा 'भागवत', की शरण में !
और छोड़ दे मोह सारी आसक्ति..,
बस करता चल रे, सुमिरन रे !!
( 4 )" त ", तप
योग साधना यहां पे करले
श्रीहरि दर्शन तुझे हो जाएंगे !
और करता चल मानव सेवा तू...,
भव सागर से तर ही जाएंगे !!
( 5 )" भागवत ", भागवत
की शरण में बैठले
सारे पाप तेरे, धुल जाएंगे !
और श्रीहरि नाम को गाता चल रे..,
सभी दुःख विषाद, दूर हो जाएंगे !!
( 6 )" भागवत ", भागवत
चले सिखलाए, जीवन जीना
और भव सागर से पार पाना कैसे !
बस, समय बचा है, थोड़ा ही यहाँ...,
आओ, करलें भक्ति, सुमिरन रे !!
- सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान