अनूभूति प्रेम की (लघुकथा) - रीता गुलाटी

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vivratidarpan.com - करवा चोथ पर्व निकट था। बाजारो में शहर की रौनक देखते ही बनती थी।भीड़ का आलम था।चारो ओर बड़ी रौनक नजर आ रही थी।चूड़ियो वाले दुकानदार नयी नयी वैरायटी ले आये थे।गांव से भी भीड का रेला आ पडा था। बाजार मे पैर रखने की जगह न थी। फिर भी कुछ चूड़ी वाले रेहडी पर नयी -नयी चूडियां सजा गलियों मे भी घूम रहे थे।

मैं बच्चो को टयूशन पढाने मे मग्न थी। शाम होने को थी। मुझे इतनी तल्लीनता से पढाते देख पतिदेव ने भांप लिया था कि अभी भी ये दो घंटे से पहले उठने वाली नही......

हार कर पति देव बैचैनी से टहलकदमी करते हुए बाहर आ गये। बाहर पडोस की औरते चूड़ियां खरीद रही थी । रेहडी पर भीड देख इनसे रहा नही गया,तो मेरे पास आकर बोले...श्रीमति जी,बाहर चूड़ियो वाला आया है। अपनी पसन्द व साइज की ले लो।कल त्योहार का दिन है,उठो,,चूडियां ले लो,,मैं कह रहा हूँ।

मैनै पढाते हुए मुंह ऊपर कियाऔर कहा.....अब मैं बाहर कैसे जाऊ? आप ही ले लो मेरे साइज की।। इस पर थोडा गम्भीर होकर वो बोले......सारी उमर तो मैं  अपने घर परिवार की जिम्मेवारियो मे तुम्हारी ओर ज्यादा ध्यान नही दे पाया। अब मैं रिटायर्ड हो गया हूं मेरा मन करता है तुम्हे खूब खरीददारी करवाऊ,, तुम्हे नया सूट या नयी साडी दिलवाऊ। तुम अपनी पसन्द की बढ़िया चूड़ियाँ पहनो। मैने हंस कर कहा,..अरे इस उमर मे कुछ भी पहन लूँगी। पर ये ना माने। मेरा हाथ खीच कर बाहर ले आये। और मेरी पसन्द की चूडियां दिलवायी।

मैं मुस्करा दी। अगले दिन करवा चोथ था। उन्हे पता था मैं बाजार नही जाने वाली।स्वयं ही गली की दुकान से बिंदिया व मेहन्दी की कीप ले आये। मैं सोच रही थी। अटूट बंघन से बंधा है ये करवाचोथ का पर्व। ये उमर नही प्यार का प्रतीक है। अनूभूति प्रेम की दोनो की आँखो मे साफ दिख रही थी।   - रीता गुलाटी *ऋतंभरा, चंडीगढ़