गाँव हीं जहान रहे - अनिरुद्ध कुमार

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आदमीं जवान रहे, केतना गुमान रहे।

झूठ साँच काम रहे, लोगमें बखान रहे।।

     

राहमें सलाम रहे, चालमें उफान रहे।

खूब नीक नाम रहे, जिंदगी उड़ान रहे।।

   

देहिये उतान रहे, बात बात जान रहे।

हीतमीत ध्यान रहे, नेत आसमान रहे।।

      

रोजहीं जुटान रहे, बातके कुटान रहे।

लोगसे मिलान रहे, बोलपे कमान रहे।।

     

धानके कटान रहे, बोझके उठान रहे।

भोजभात खान रहे, काम सब महान रहे।।

      

पोखरा नहान रहे, दूरसे कुदान रहे।

मूरती भसान रहे, लोगमें पुछान रहे।।

      

हालचाल आम रहे, आपनों इमान रहे।

सोंचते बिहान रहे, गाँव हीं जहान रहे।।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड