गर बेटी न होती - अमन रंगेला

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अगर बेटी नहीं होती तो घर गुलज़ार कब होता,

बिना बेटी सुखी जीवन मेरा संसार कब होता ।

नहीं रहती सदा ये बेटियां मां बाप के घर में,

धनी हो या हो निर्धन बाप का घर बार कब होता।

थी चिड़िया की तरह चहके वो घर मां बाप के अपने ,

बिना बेटी के रौशन मेरा घर परिवार कब होता ।

निशाजल सी बड़ी नाजुक सुकोमल बेटियां होती,

कभी अश्कों से भीगे हो नही रूखसार कब होता।

हवस की भूख चढ़ती जा रही है आज ये बेटी,

घिनौना खेल का दुनिया से बंद बाजार कब होगा।

घरों में अब सयानी बेटियां बेचैन रहती है,

कहां पर नोच खाए भेड़िया उद्धार कब होगा ।

हया गरिमा से पूरित दो कुलों की लाज ये रखती,

बिना बेटी के घर कोई यहां उजियार कब होता ।

किया था ब्याह बेटी का दिया था दान कन्या का ,

चली जब छोड़ के देहरी रुका अश्रुधार कब होगा ।

 - अमन रंगेला "अमन" सावनेरी

 सावनेर, नागपुर, महाराष्ट्र, फ़ोन -  9579991969