हूँ घुमक्कड़ - सुनील गुप्ता

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हूँ घुमक्कड़

और रहा घूमता  !

सदा जीवन भर.....,

यहां से वहां फिरता !!1!!

बन यायावर

शहर दर शहर  !

करता रहा सफर....,

सुबह शाम हरेक प्रहर !!2!!

चला उम्रभर

कभी थका नहीं  !

देखी संस्कृति धरोहर.....,

बनाए कई मित्र यहीं !!3!!

पड़ाव हरेक

सीखा गए बहुत   !

मिले लोग अनेक.....,

सभी भलमनसाहत !!4!!

दौरे घुमक्कड़ी

चली बरसों बरस  !

फिर रफ़्तार पकड़ी.....,

पर, रहा जस का तस !!5!!

-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान