एक कहानी रही - यशोदा नैलवाल

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द्वार पर मन के दस्तक तुम्हारी हुई,

नैन दर्पण में सपने सजाती रही।

एक कहानी रही जो सदा अनसुनी,

गीत में ढाल  कर  गुनगुनाती रही।

कोशिशें जब सभी हार कर थक गयीं,

बिन कहे सब उसे मैं सुनाती रहीं।

प्रेम के आचमन के लिए ही सदा,

मैं सरोवर को पनघट दिखाती रहीं।

स्वप्न की भव्यता में परम-मग्न उन,

याद की दुल्हनों को जगाती रही।

एक कहानी रही..................

भाग्य पैरों में बन्धन-भले बांध दे,

पर हृदय ये तुम्हारी ही धुन गाएगा।

देह में  मेरी , सावन  भले मूर्त हो,

पर हृदय प्रेम का जल नहीं पाएगा।

प्रेम अधरों पे करने लगा जो मनन,

मौन से ढाँप कर मैं छुपाती रही।

एक कहानी रही..................

ना कभी तुमने मुझको है अपना कहा,

ना किसी और को नेह का हक़ दिया।

इक भंवर में उलझती चली ही गई,

दर्द के आवरण को कनक मिल गया।

एक विश्वास मन में लिए हर जनम,

याद जो था उसे ही भुलाती रही।

एक कहानी रही.....................

- यशोदा नैलवाल, दिल्ली