टूटा मुख से एक दंत मोती - सुनील गुप्ता

टूटा मुख से एक दंत मोती
क्या सुनाऊं तुम्हें आपबीती !
संग छोड़ चला एक प्रिय साथी......,
करता था संग जिसके मस्ती !!1!!
था उसपे मुझको पूरा नाज
करता था सारे मेरे वो काज !
छोड़ गया वो बीच रास्ते......,
होना था उसका अंत ही आज !!2!!
वो हर शब्द को था परखता
फिर जाने देता था उसको बाहर !
था मुझको उसपे पूरा विश्वास.....,
कि वो ना करेगा शर्मसार !!3!!
छोड़ गया वो पीछे यादें
क्या जवानी, बचपन की बातें !
अब किससे करें हम यहां फरियाद....,
कटती ना बिन, उसके दिन रातें !!4!!
वो रहा पूरे साठ बरस यहां
संग ख़ूब उड़ाई मालपूड़ी !
बीच राह में छोड़ गया वो.........,
रह गयी सारी आस अधूरी !!5!!
था मुख का वो असली हीरा
अग्रिम पंक्ति का बहादुर सिपाही !
बिन उसके पंक्ति गड़बड़ाई.....,
क्लान्त शांत हुआ मायूसी छायी !!6!!
कहें इसे किस्मत का खेल अजब
कि तारीख पायी उसने चौदह !
था अंक चौदह से उसका मेल......,
अवतरण दिवस देह का था भी चौदह !!7!!
मिलना बिछड़ना ही जीवन है
है यही जीवन की सच्चाई !
संग साथ जिसके, हैं हम आए.....,
होनी है उनकी एक दिन विदाई !!8!!
जीवन के इस खेल को समझ रे
हैं ये सब ऊपर वाले के इशारे !
उम्र ढल रही है अब यहां पर......,
चल छोड़ता मोह आसक्ति सारे !!9!!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान