सेवानिवृत्त सैनिक दिवस (वेटरन्स डे) - हरी राम यादव

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vivratidarpan.com - देश में भारतीय सशस्‍त्र सेनाओं द्वारा वर्ष 2017 से प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को हमारे सेना नायक पहले कमांडर-इन-चीफ फील्‍ड मार्शल के. एम. करियप्‍पा, ओ.बी.ई.के सेना में दिए गए अतुलनीय योगदान की याद में सेवानिवृत्त सैनिक दिवस (वेटरन्स डे) मनाया जाता है।

फील्ड मार्शल के. एम. करियप्पा का जन्म 28 जनवरी 1900 को मर्कारा राज्य में हुआ था, जिसे अब कर्नाटक कहा जाता है। उनके पिता श्री मडप्पा , कोडंडेरा माडिकेरी में एक राजस्व अधिकारी थे। फील्ड मार्शल करियप्पा चार भाइयों और दो बहनों के परिवार में दूसरी संतान थे। 1917 में मडिकेरी के सेंट्रल हाई स्कूल में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए प्रेसीडेंसी कॉलेज, चेन्नई में दाखिला लिया। कॉलेज में उन्हें पता चला कि भारतीयों को सेना में भर्ती किया जा रहा है और उन्हें भारत में प्रशिक्षित किया जाना है। वह एक सैनिक के रूप में सेवा करना चाहते थे। उन्होंने सेना में भर्ती होने के लिए आवेदन किया। 70 आवेदकों में से 42 लोगों को चुना गया, उनमें से करियप्पा एक थे, जिन्हें अंततः डेली कैडेट कॉलेज, इंदौर में प्रवेश दिया गया। उन्होंने अपने प्रशिक्षण के सभी पहलुओं में अच्छा स्कोर किया और स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वह पढ़ाई में बहुत अच्छे थे, किन्तु गणित, चित्रकला उनके प्रिय विषय थे। एक होनहार छात्र के साथ साथ वे हॉकी, टेनिस के अच्छे खिलाड़ी भी रहे।

उन्होंने 1919 में भारतीय कैडेटों के पहले समूह के साथ किंग्स कमीशन प्राप्त किया, और 1933 में, स्टाफ कॉलेज, क्वेटा में शामिल होने वाले पहले भारतीय अधिकारी थे। 1942 में लेफ्टिनेंट कर्नल के.एम. करियप्पा ने 7 वीं राजपूत मशीन गन बटालियन (अब 17 राजपूत) को खड़ा किया। 1946 में एक ब्रिगेडियर के रूप में वह इंपीरियल डिफेंस कॉलेज, यू. के. में शामिल हो गए। बल पुनर्गठन समिति की सेना उप समिति के सदस्य के रूप में सेवा करने के लिए यू. के. से वापस बुलाए गए, विभाजन के दौरान उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच सेना के विभाजन के लिए एक सौहार्दपूर्ण समझौता किया।

फील्ड मार्शल करिअप्पा एक बहुत ही अनुशासन प्रिय, सख्त मिजाज और नियमों तथा कानूनों का पालन करने वाले व्यक्ति थे। इसका अंदाजा एक घटना से लगाया जा सकता है।  फील्ड मार्शल करिअप्पा बंटवारे से पहले पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख और राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के भी सीनियर अधिकारी रह चुके थे। साल 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उनके बेटे के.सी. नंदा करिअप्पा को पाकिस्तानी सैनिकों ने बंदी बना लिया था। के.सी. नंदा करिअप्पा भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट थे, जो युद्ध के दौरान पाकिस्तान सीमा में विमान लेकर आक्रमण करने गए थे। पाक सैनिकों ने उनके विमान को मार गिराया था, लेकिन नंदा ने विमान से कूदकर अपनी जान बचा ली थी। उनकी पहचान होने पर, रेडियो पाकिस्तान ने तुरंत फ्लाइट लेफ्टिनेंट के सी नंदा करियप्पा को पकड़ने की घोषणा की। जनरल अयूब खान ने फील्ड मार्शल करिअप्पा को बेटे की सुरक्षा के बारे में जानकारी देने के लिए जनरल करियप्पा से खुद संपर्क किया। जब अयूब खान ने बेटे को तुरंत रिहा करने की पेशकश की, तो बताया जाता है कि करियप्पा ने इसका मज़ाक उड़ाया और कहा कि वह हमारे बेटे को किसी भी अन्य युध्दबंदी से बेहतार सुविधाएं न दें । वह अब मेरा बेटा नहीं है। वह इस देश की संतान है, एक सच्चे देशभक्त की तरह अपनी मातृभूमि के लिए लड़ने वाला एक सैनिक है। आपकी दयालुता के लिए मेरा बहुत-बहुत धन्यवाद । इस घटना ने उन्हें महान सैनिक बना दिया था।

14  जनवरी 1953 में सेना से रिटायर होने के बाद भारत सरकार ने 15  जनवरी 1986 को उन्हें फील्ड मार्शल का सर्वोच्च पद दिया, जो पांच-सितारा जनरल ऑफिसर रैंक है। भारतीय सेना के इतिहास में अभी तक यह रैंक मात्र दो अधिकारियों को प्रदान किया गया है। इसमें फील्ड मार्शल करियप्‍पा के बाद फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का नाम आता है। फील्ड मार्शल करिअप्पा को ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एम्पायर, मेन्शंड इन डिस्पैचेस और लीजियन ऑफ मेरिट जैसे अंतर्राष्ट्रीय सम्मान भी मिले। 15 मई 1993 को 94 वर्ष की आयु में बैंगलोर में उनका निधन हो गया।

फील्ड मार्शल करियप्पा का भारतीय सेना के साथ लगभग तीन दशकों का संबंध रहा है, इस दौरान उन्हें स्टाफ और कमान के काम का व्यापक अनुभव था। 1953 में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने 1956 तक ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भारतीय उच्चायुक्त के रूप में कार्य किया। पूर्व सैनिकों के कल्याण की दृष्टि से करियप्पा ने 1964 में इंडियन एक्स-सर्विसमैन लीग की स्थापना की। उन्होंने पूर्व सैनिक कल्याण विभाग, रक्षा मंत्रालय के तहत एक अंतर-सेवा संगठन, पुनर्वास निदेशालय (बाद में पुनर्वास महानिदेशालय) की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जो सेवानिवृत्त सैनिकों के पुनर्वास के विभिन्न मुद्दों की देखभाल करता है।

सेवानिवृत्त सैनिक दिवस को मनाए जाने के पीछे मूल भावना यह है कि सेना के संघर्षपूर्ण जीवन के पश्चात सैनिक समाज में स्वयं को अकेला न महसूस करें। उनको उनका सम्मान मिलता रहे। सेवानिवृत्त सैनिकों को बेहतर सुविधाएं देने के लिए केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों ने कई कल्याणकारी कदम उठाए हैं लेकिन सरकारी कार्यालयों में बैठे लोगों की लटकाने, भटकाने और झटकाने की कार्य संस्कृति के कारण सेवानिवृत्त सैनिक अपने को ठगा हुआ महसूस करता है। सेवानिवृत्त सैनिकों के लिए देश में सरकारी मंचो से बड़ी बड़ी घोषणाएं की जाती हैं, लेकिन सरकारी आफिसों तक पहुंचते पहुंचते यह योजनाएं फाइलों में केवल शोभा की वस्तु और फाटो खिंचवाने का साधन मात्र रह जाती हैं। सेवानिवृत्त सैनिक दिवस मनाने की सार्थकता तभी है जब सेविानिवृत्त सैनिकों की समस्याओं का समाधान त्वरित गति से हो। उन्हें `कल आना’ की कार्यशैली का सामना न करना पड़े और सरकारों द्वारा दी जा रही सुविधाएं बिना किसी अड़चन के उन तक पहुंचें। -हरी राम यादव (स्वतंत्र लेखक) , अयोध्या, उत्तर प्रदेश