गीत - जसवीर सिंह हलधर
कूप अब पाताल में ईमान के गरके हुए हैं !
गीत बोलो क्या सुनाऊँ लोग पत्थर के हुए हैं !
ध्वंस के बादल घिरे है आज धरती डर रही है ।
जाति भाषा धर्म वाली सोच कौतुक कर रही है ।
आग भारत में लगी है बाज बिन पर के हुए हैं ।।
गीत बोलो क्या सुनाऊँ लोग पत्थर के हुए हैं !!1
मज़हबी जामा पहनकर झूठ के प्रतिमान गढ़ते ।
हंस का चोला पहन कर भक्त बगुले यान चढ़ते ।
बिम्ब अब देखूँ कहाँ पर आइने दरके हुए हैं ।।
गीत बोलो क्या सुनाऊँ लोग पत्थर के हुए हैं !!2
आज के नेता बने हैं चोर डाँकू के दुलारे ।
मंच पर दिखते विदूषक नायकों का भेष धारे ।
गंदगी में सांसदों के शीश तक सरके हुए हैं ।।
गीत बोलो क्या सुनाऊँ लोग पत्थर के हुए हैं !!3
मंच पर कविता हमारी राह से भटकी हुई है ।
बस लिफाफों में अदब की चाह भी अटकी हुई है ।
किन्नरों से कवि हुए हैं नारी ना नर के हुए हैं।।
गीत बोलो क्या सुनाऊँ लोग पत्थर के हुए हैं।।4
हाल ऐसा ही रहा तो क्रांति होनी है जरूरी ।
लेखिनी मेरी पिघल कर बन रही तलवार पूरी ।
विश्व में बदलाव "हलधर "क्रांति ही करके हुए हैं ।।
गीत बोलो क्या सुनाऊँ लोग पत्थर के हुए हैं !!5
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून