संगम - मधु शुक्ला
Sun, 29 Jan 2023
| 
संगम शब्दों का जब होता, भावों का मेला लगता है,
लेखन की दुनियाँ को सुंदर, कविता का मोती मिलता है।
बीज, खेत, हल के संगम से, अन्न प्रगट होता है जग में,
मानव की भूख मिटाने को , हलधर मौसम से लड़ता है।
दो परिवारों के संगम से, बँधते हैं परिणय के बंधन,
मेल जोल से ही मानस में, सद्भाव परस्पर बढ़ता है।
मात,पिता,गुरु रक्षक बनकर,दिशा बोध करवाया करते,
शिक्षा से संगम मानव का, अज्ञान तमस को हरता है।
संगम हो जहाँ विचारों का, झोली भर जाती खुशियों से,
मन के दीपों का उजियारा, रोशन घर आँगन रखता है।
— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश