समाज - अनिरुद्ध कुमार

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सामाजिक प्राणी सभी, जीना मरना साथ।

जीवन की धूरी यही, चलें पकड़ कर हाँथ।।

सुखदुख में निर्वाह हो, दे समाज उपहार।

अनुरागी मन बावरा, गाये गीत मल्हार।।

कौन किसे है जानता, परिचय को हलकान।

यह समाज पहचान दे, कर कर के गुनगान।।

सामाजिक परिवेश में, जीना हो आसान।

जीवनयापन सरल हो, होठों पर मुस्कान।।

मानव रहे समाज में, पाता प्यार दुलार।

बिन समाज क्या जिंदगी, कौन करे इंकार।।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड।