प्रवीण प्रभाती - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

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शंभु बसे जिसके मन में उसको जग में कुछ और न भाता।

चित्त लगे नित चिंतन में उर भक्ति समुद्र सदा छलकाता।

डूब पुनः उतराय जिया जपता शिव नाम सदा गुण गाता।

मुक्ति मिले तब मानव को जब जोड़ लिया प्रभु से शुभ नाता।

कांवड़ लेकर भक्त कई चल पैदल देव नदी जल लाते।

उत्तर भारत में इसको सब उत्सव भाँति सदैव मनाते।

कांवड़िए विश्राम करें इस हेतु सभी जन हाथ बटाते।

वापस आकर भक्त उसी जल से शिव का अभिषेक कराते।

हे शिव पूजन अर्चन हेतु हमें शुभ अक्षर पंच रटाना।

वृद्धि सदा सुख की करके सबके हर दुक्ख दरिद्र घटाना।

लोग चलें शुभ मार्ग सदा उनके पथ से हर शूल हटाना।

शंकर शंभु दया करके इस जीवन के भव ताप मिटाना।।

भाल विशाल सदाशिव का सब भक्त सदा उनके गुण गाते।

धार प्रवाहित गंग करें जनजीवन को प्रभु मुक्ति दिलाते।

भाव भरे मन से शिव पूज सभी उनको निज भक्ति दिखाते।

शंभु दयालु बड़े मन से फल वांछित देकर भाग्य जगाते।

- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश