कविता - युद्धघोष (महाराणा) -  जसवीर सिंह हलधर ​​​​​​​

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थर थर होने संसार  लगा ।

ज्यों राणा का दरवार लगा।।

पर्वत की  उन्नत  चोटी  पर ,

रण वीरों का अंबार  लगा ।।

अंबर में एक  वितान  तना ।

दिल्ली में दिखता  मान तना ।।

ऊँची ऊँची चट्टानों  पर ,

दिखता मेवाड़ निशान  तना ।।

राणा  बैठा  हुंकार  लिए ।

नागों जैसी फुंकार लिए ।।

तैयार दिखे सारे योद्धा ,

बैठे कर में तलवार लिए ।।

योद्धा रण के अरमान लिए ।

लड़ने का साज समान लिए।।

सरदार भील भी आ धमके ,

संगर को तीर कमान लिए ।।

रण वीर नहीं हटने वाले ।

जननी पद पे मिटने वाले ।।

तलवार उठा राणा बोले ,

सर मुग़लों के कटने वाले ।।

राणा असि कर में चमक रही ।

दामिनी भाँति जो दमक रही ।।

राणा का सिंह नाद सुनकर ,

रण भेरी मानो गुमक रही ।।

वो मान अवज्ञा किया आज ।

ऐसा घृणित कर दिया काज ।।

मेवाड़ी नहीं डरा करते  ,

मानेगा यह पूरा समाज ।।

अब मान लौटकर आएगा ।

अभिमान लौटकर आएगा।

अकबर को जो फूफा कहता ,

शैतान लौटकर आएगा ।।

अकबर हमको छलने वाला ।

मुगलों का दल चलने वाला ।।

तैयार रहो "हलधर"  वीरो ,

यह युद्ध नहीं टलने वाला ।।

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून