नागराज - प्रदीप सहारे

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सुबह सुबह,

नागपंचमी का दिन।

मिलें नागराज ।

मैंने कहा,

"कैसे हो महाराज ,

आपके तो हैं मजे,

पहले करते थे,

राजाओं के ,

धन की रखवाली ।

मंदिर,खंडहर,

कोई जगह न खाली  ।"

अब,

आप  बताओं ,

अपनी कहानी,

अपने जुबानी ।

नागराज बोले,

" क्या बताऊं भाई,

अपनी कहानी तो हैं,

आधी हकीकत ,

आधा फसाना ।

नहीं बदला बस,

अभी भी जमाना ।

पहले करता था,

राजाओं,धनकुबेरो के,

धन की रखवाली ।

तब चलता था,

मुझ पर गरुड़ मंत्र  ।

मंत्र के आगे मैं,

हो जाता था शक्तिहीन ।

अब करता हूं,

लुटी हुई जनता के,

धन की रखवाली ।

जो रखते,

नेता, मंत्री ,

मंत्री के साला - साली,

उनके भी घर,

कोई जगह,

नही रहती खाली।

अब मंत्र की जगह,

ईडी तंत्र ने है ली ।

आते हैं वाहनो में भरकर,

ले जाते वाहनो में भरकर ।

यह सब,

एक झटके में कहा,

तो सांस भर आयी।

लंबी सांस लेकर,

फिर धीरे से बोला भाई,

मैं तब भी था शर्मिदा ।

आज भी हूं शर्मिदा ।

क्या करुं,

मेरा भी हैं धंदा ।"

वह फन पटकर,

हो गया आंखों से दूर।

मैं भी,

देखता रहा,

होकर मज़बुर ...

️प्रदीप सहारे, नागपुर , महारष्ट्र