महिला काव्य मंच दिल्ली की मासिक गोष्ठी सम्पन्न : डॉ. भूपिंदर कौर

 | 
pic

Vivratidarpan,com , दिल्ली। मध्य दिल्ली इकाई की मासिक काव्य गोष्ठी\ डॉ.भूपिंदर कौर की अध्यक्षता में हुई । श्रीमती स्नेह लता पांडे जी ने बहुत ही शानदार तरीके से मंच संचालन किया । श्रीमती कुसुम लता 'कुसुम' जी ने सरस्वती वंदना से काव्य गोष्ठी का आग़ाज़ किया। रश्मि झा की कविता- एक जीवन ही काफी है.. तुझको अपना कहने को...किसी ने गा दिया गम को.. भरी महफ़िल में रुसवा कर..

पुष्पेंद्रा चगती भंडारी ने अपनी ग़ज़ल से पूरे माहौल को खुशनुमा बना दिया। उलझी नज़्मों का दीवान हूँ मैं, जागी रातों में मुझको पढ़ा कीजिए ।

श्री गुरु नानक देव खालसा कॉलेज की छात्रा किरण कुमारी ने स्त्रियों की आजादी से संबंधित कविता पढी- स्त्रियों की आजादी । कई मां की कोख में तो कहीं जिंदा जलाई जाती है, पिता के घर में जो पराया धन कहलाती हैं और से ससुराल में घूंघट में छुपाई जाती है l क्या यह स्त्रियों की आजादी है? उनके पश्चात सुनीता पुनियां जी का विरह गीत जिसने सभी को भावविभोर कर दिया। बड़े प्यार से चूमकर मुखड़ा मेरा, तुम मेरी चाहत पर कितना मरते थे। जब भी पुरवाई चलती थी तेरी खुशबू लिए बहती है। कौन कहता है बीते पल याद नहीं आते।  डॉ. ममता गाबा जी की कविता नया सूरज निकला है जिसने अंधेरे को परे धकेला है ।

प्राची जी की कविता "सोचता हूं कभी सुबह उठूं , और  तुम जागो नींद से संग मेरे बैठी हो मेरे घर की बालकनी में कभी देखूं तुम्हें बनाते चाय" कुसुम लता 'कुसुम आबरू नहीं जिनकी कुछ भी इस ज़माने में। बाज वे नहीं आते तोहमतें लगाने में। 'चंचल हरेंद्र वशिष्ट हमारी हर कहानी के अहम् किरदार तुम ही हो । हमें कितनों ने चाहा पर हमारा प्यार तुम ही हो। सीमा कॉलेज के वो दिन थे कैसे, कैसी कटती राते थी, तुमको मैं बतलाऊ कैसे, कितनी हसीं वो बाते थी। स्नेह लता पांडे कहें गढ़ाऊं हार तोहें बीस तोले की। साजन के मुँह चढ़ बेटी अंगूर की बोले थी। डॉ. भूपिंदर कौर शर्म हया नहीं उन आंखों में, जो बच्चियों को लजाते हैं l फिर पाप छिपाने की खातिर जिंदा उसे जलाते हैं l

सभी की रचनाओं में विभिन्न रंग भरे हुए थे जैसे कविताओं का इंद्रधनुष खिल उठा था। काव्य पाठ के उपरांत अध्यक्षा डॉ भूपिंदर कौर ने सभी की रचनाओं की सारगर्भित समीक्षा करते हुए अंत में उपस्थित रचनाकारों को सफल काव्य गोष्ठी की बधाई दी ।