माँ - शिव नारायण त्रिपाठी

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जन्मदायिनी,पूजनीया माँ

रचनाकार है जग की।

वह देवी, अन्नपूर्णा,पालनहार,

लक्ष्मी,दुर्गा,पथ प्रर्दशक सारे जग की।

सुख हो,चाहे दुख,

कुटुंब की शोभा है।

शांति है,कांति है कुल की,

अकल्पनीय सहनशक्ति की प्रतिभा है।

सुत सुता जैसे  हो,

माँ ममता की झरना है।

नित सुख की चिंता करती,

वह जननी,ममता है।।

कभी ना अपमान हो,

नित सम्मान रहे माँ की।

जन्म दिया है,कष्ट  सहा है,

हित चाहती नित सन्तान की।।

धन की चाह नहीं उसे,

बेटे-बेटी ही अमूल्य धन हैं।

स्वार्थ नहीं रखती कभी,

सुखी हो सभी,मन की चाह है।।

सुखी जीवन चाहते,

माँ का  सम्मान करें।

परवश हो जाये जब,

सेवा का नित ध्यान करें।।

प्रथम पूज्या,गुरु है माँ,

हमें जीवन दिया है।

हमें  जीने की कला दी,

हमे मानव बनने संस्कार दिया है।।

- आचार्य शिव नारायण त्रिपाठी, बुढ़ार, शहडोल, मध्य प्रदेश