लगता है नवनीता - अनिरुद्ध कुमार

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बार बार अंतस दुख पीता,

मैं नहीं राम, ना तुम सीता।

हर कोई बस है अभिनेता,

सुखदुख के साये में जीता।

भावुक मन कितना संगीता,

बोली बोले  मीठा तीता।

अभिलाषी नित आपा खोये,

पीटे छाती कह कह रीता।

खोया, पाया, हारा, जीता,

लोभ लाभ में गुदड़ी सीता।

मालिक जो चाहें वह होता,

तन मन जारे देख पलीता।

छोह मोह लगता मनमीता,

हँसते रोते जीवन बीता।

भूख प्यास के बने विजेता,

पढ़ा रहे ज्ञानी सब गीता।

सदाचार हीं कर्म पुनीता,

स्वार्थी रहता है भयभीता।

नित अकुलाये प्राण पखेरू,

हर पल लगता है नवनीता।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड