जीवन का ताना बाना लेकर बैठी हूँ - किरण  मिश्रा 

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फिर से इक ख्वाब पुराना लेकर बैठी हूँ।

पल-पल का मैं जोड़ घटाना लेकर बैठी हूँ।

रोज ही टूटी, रोज जुड़ी हैं जो साँसें,

उन साँसों में इक गीत पुराना लेकर बैठी हूँ।

वक्त का पहिया जो बेधें मछली की आँखें,

ऐसा कोई तीर निशाना लेकर बैठी हूँ।

सुख सरिता में डूबा,दुख गहन समन्दर,

उर में उम्मीदों का खजाना लेकर बैठी हूँ।

कृष्ण बासुँरी पुनः पुकारे राधा को पनघट,

होंठो पर मृदु गीत सुहाना लेकर बैठी हूँ।

दिल की कोटर झूल रही है प्रीत तेरी,

पलक छाँव में एक फसाना लेकर बैठी हूँ।

सुख-दुख का है अनुपम खेल जिन्दगी,

तो जीवन का ताना बाना लेकर बैठी हूँ।

#डा किरणमिश्रा स्वयंसिद्धा, नोएडा, उत्तर प्रदेश