ख्वाहिश - राधा शैलेन्द्र

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एक आशियाँ बनाना चाहती हूँ

खुशियों का

जिसमें खिलखिलाते सपने हो

तुम्हारी उम्मीदों का !

पूरी हो हर ख्वाहिश हमारी

साँसे तुम्हारी, धड़कन मेरी

बिन कहे सुनले

बातें एक दूसरे की!

एतबार की नींव पर

खड़ी हमारे घर की इमारत हो

न प्यार में सौदा तुम करो

न अपनी उपेक्षा का बोझ

मैं तुम पर डालूँ

'जिम्मेदारियां 'कुछ तुम उठाओ

कुछ मैं समेट लूं खुद में!

घर जो तुम्हारा मेहनत और समर्पण है

घर जो मेरा सम्पूर्ण जीवन है

बस उसमें उल्लास भरना चाहती हूँ

बच्चों के बचपन में खुद को टटोलना चाहती हूँ।

मैं एक बार फिर से जीना चाहती हूँ

पतंग बन उड़ना चाहती हूँ

आसमां में

पर डोर तुम्हें सौंपना चाहती हूँ

क्योंकि एतबार की सबसे बड़ी

परिभाषा हो तुम

मेरे आशियाने की नींव तुम्हीं तो हो

बस तुम.........

हाँ तुम!

- राधा शैलेन्द्र, भागलपुर, बिहार