कविता - जसवीर सिंह हलधर

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कड़वा मीठा या खट्टा है, मानव का जीवन पट्टा है ।

हैं एक पक्ष के हस्ताक्षर , दूजे को कुछ अधिकार नहीं ।।

पहरा है उसका सांसों पर ,शोणित बन बहता रग रग में।

वो तंतु कोशिकाओं में है , राही के चलता पग पग में।   

वो रूप बदलता है अपने , वो ही साधू वो ही ठग में ।

मानस को पता नहीं चलता , कितना आया किसके मग में।

वो ही अपराधी के सर में , क्यों उसको नेक विचार नहीं ।।

हैं एक पक्ष के हस्ताक्षर , दूजे को कुछ अधिकार नहीं ।।1

सब जीव जंतु इस धरती के, हैं एक दूसरे का भोजन ।

कैसा यह खेल तमाशा है , कैसा है उसका संयोजन ।

वो जड़ चेतन का मालिक है, उसका ही सारा परियोजन ।

सब न्याय व्यवस्था है उसकी ,उसका ही सारा अभियोजन।

निर्दयता उसने इतनी की , कटु निर्णय में उपकार नहीं ।।

हैं एक पक्ष के हस्ताक्षर , दूजे को कुछ अधिकार नहीं ।।2

रखता नौ माह अंधेरे में , देता है छोटा सा बचपन ।

आगे की राह दिखाता है , फिर देता दान हमें यौवन ।

इतना निष्ठुर निर्णायक है , दे गया बुढापा लुटा चमन ।

वो इस मानव के जीवन में , भरता कितने उत्थान पतन ।

वह नीति नियंता इस जग का ,पाता है उसका पार नहीं ।।

हैं एक पक्ष के हस्ताक्षर , दूजे को कुछ अधिकार नहीं ।।3

बेशक खुद को कुछ भी मानें , हम मात्र खिलौने हैं उसके ।

इस भोग वासना के घर में , हम भोग भगौने हैं उसके ।

कुछ भोग सुहाने हैं उसके रोग रोग घिनौने हैं उसके ।

कुछ रूप सुहाने हैं उसके ,कुछ रूप सलौने हैं उसके ।

मानव में अहंकार क्यों है ,पाया "हलधर" आधार नहीं ।।

हैं एक पक्ष के हस्ताक्षर , दूजे को कुछ अधिकार नहीं ।।4

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून