कविता - अशोक कुमार यादव

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हार से हार कर बैठे हो तुम।

मन को मार कर बैठे हो तुम।।

जीत के लिए छोड़ दिए तैयारी।

तोड़ दी पुस्तकों से अपनी यारी।।

अनमना रहना अच्छा लगता है।

बीती हुई बातें अच्छी लगती है।।

मैं क्यों हारा इसका शोध कर ?

किये हुए गलती का बोध कर।।

मन को एकाग्र कर साहस भरकर।

लक्ष्य की ओर जाना है दौड़ कर।।

फिर शुरू कर अध्ययन जीत की।

प्रेरणा लेते चल ज्ञान अतीत की।।

जाग जा युवा समय के संग चल।

दुःख की बदली को सुख में बदल।।

कर्म राह में आयेगी जो चुनौतियां।

ज़िद के सामने दूर होगी पनौतियां।।

कठोर परिश्रम से दक्षता हासिल कर।

तब मंजिल राह देखेगी चुनेगी वर।।

झूम के नाचोगे मन में खुशी होगी।

अंतिम में जय होगी, विजय होगी।।

 - अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़