कविता (नया साल-डांस बार) - जसवीर सिंह हलधर

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होटल में महँगी कारों से, सुंदरियां मटक मटक आती ।

ऊंची एड़ी की चरण पादुका, पहने चलतीं इठलाती।।

प्रवेश द्वार पर होटल के दो खड़े हुए हैं मुस्टंडे ।

आंटी में पिस्टल लगी हुई हाथों में लिए हुए डंडे ।

अंदर की दीवारों पर भी हैं बहुरंगी सी तस्वीरें ।

कैसे खींची होंगी यारो ये अधनंगी सी तस्वीरें ।

तरह-तरह की इत्र लगाए तीखी चटक गंध फैलाती ।।

होटल में महँगी कारों से सुंदरियां मटक मटक आती ।।1

गलियारे में सुंदर-सुंदर कुछ नग्न प्रतिमा लगी हुईं ।

ऐसा लगता है मानो वो ,रति क्रीड़ा हेतू जगी हुईं ।

जीन्स टॉप कटिबंध पहन कर ,गौर बदन बालाएं आयी ।

पोशाको से अंग छलकते , देख देख आंखें शरमायी।

टक टक टक पग धरें धरा पर, पग पग मादकता दर्शाती।।

होटल में महँगी कारों से ,सुंदरियां मटक मटक आती।।2

बीयर वोदका रम व्हिस्की  से सजी हुई है मधुशाला ।

साकी भी तो महिला मॉडल है आंखों पर चश्मा काला ।

कुछ पुरुष ठिठोली मार रहे पी मदिरा कुर्सी मेजों पर ।

कोई शाइरी बोल रहा कोई चुटककुल्ले अंग्रेजों पर ।

मदमस्त थिरकती बालाएं  प्यालों से मदिरा छलकाती ।।

होटल में महँगी कारों से ,सुंदरियां मटक मटक आती।।3

कांच के सुंदर प्यालों में मधु अधरों का करती चुंबन ।

मदिरा को पीते पीते कुछ  नर नारी करते आलिंगन ।

महिला चुस्की ले ले कर के पी रहीं कांच के प्यालों में ।

मदिरा सेवन के समय दिखायी देते डिम्पल गालों में ।

गजगामिनी सी मृग नयनी मादकता अपनी दिखलाती ।।

होटल में महँगी कारों से सुंदरियां मटक मटक आती ।।4

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून