न्याय - (लघुकथा) 

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vivratidarpan.com - आज सुबह-सुबह ही ललमतिया तैयार होकर  तेजी से स्टेशन की ओर भागी जा रही थी । उसे देखकर यह कहना कि पिछले दो हफ्तोंसे उसे टाइफायड बुखार है मिथ्या ही जान पड़ती है।

ससमय अदालत पहुँच कर  अपनी मुकदमे की सुनवाई का इन्तजार करने लगी।

शाम तक बिना कुछ खाये पिये  बार बार वकील से पूछतीं साहब और कितना  समय लगेगा।

 वकील साहब  अपने काम में व्यस्त थें  बस इतना ही कहते 'बस अभी थोड़ी देर में।

* शाम तक लालमतिया ने इन्तजार किया  जब वकील साहब जानें लगें तो उनका ध्यान लालमतिया पर गया  और वे स्नेह जताते हुए बोलें  काकी आपकी सुनवाई अगले महीने में  होंगी।

आज जज साहब की तबियत ठीक नहीं है।

जुकाम हो गया है, इसलिए आज कोर्ट  नहीं आयें है ।मै 

आपको तारीख  बता दूँगा।

* लालमतिया स्तब्ध होकर बस इतना ही कह पायी ,हे ईश्वर यह कैसा न्याय है।*

- रूबी गुप्ता, दुदही, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश।