प्रश्नवाचक बेकल नयन - अनुराधा पाण्डेय
Sep 7, 2022, 23:19 IST
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दीप थी मैं जली अनवरत रात भर,
धर्म धारे रही, मत मढ़ो लांछना।
नेह इतना महज मिल सका था मुझे ,
भोर तक मैं किसी भाँति जलती रहूँ।
तुम स्वयं रंच कोई चुभन भी न लो ,
मैं अमा से लगातार लड़ती रहूँ।
ज्ञात तब भी मुझे थी कि तुम सूर्य की..
प्रात होते करोगे चरण वंदना ।
धर्म धारे रही मत मढ़ो लांछना।
बात मैंने कही सद्य जो भी तुम्हें,
अर्थ लेना न तुम भूल कर अन्यथा ।
प्रेम मसि बन गिरी पृष्ठ पर अनमनी,
यह बिना चाह ही ढल गई है व्यथा ।
प्रीत पूजा समझती रही हूँ सतत...
सूर्य से कम न है दीप की साधना ।
दीप थी मैं जली अनवरत रात भर,
धर्म धारे रही मत मढ़ो लांछना।
- अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली