मैं धरती पर कुछ कर न सका - अनिरुद्ध कुमार
Updated: Apr 21, 2022, 23:37 IST
| जब अंधकार नभ छाया था,
मैं दीपशिखा ले आया था,
यह व्यर्थ हुआ आना जाना,
दुखियों का पीड़ा हर न सका।
मैं धरती पर कुछ कर न सका।।
अपने सुख-दुख में लीन रहा,
हर पल भटका नित यहाँ वहाँ,
मृग-तृष्णा में लिपटा रहता,
अपनी झोली भी भर न सका।
मैं धरती पर कुछ कर न सका।।
यह समय गुजरता चला गया,
चित व्याकुल सा हो भरमाया,
दिन-रात यही नित सोंच रहा,
मैं भटका राह, सम्हर न सका।
मैं धरती पर कुछ कर न सका।।
बेचैनी जीवन को घेरे,
चिंतित मन में कितने फेरे,
हो व्यथित हिया चितकार करे,
जीवन पंछी को धर न सका।
मैं धरती पर कुछ कर न सका।।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड