कार से कब तक रौंदी जायेगी - हरी राम यादव

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कभी नारों से नारी का भला,

नहीं हो सकता है श्रीमान ।

नारे केवल बनकर रह गये,

सत्ता प्राप्ति की सुलभ तान ।

सत्ता प्राप्ति की सुलभ तान,

कान पर कोई जूं तक न रेंगी।

न आया नारों से बदलाव,

न बंद हुई ऊपर खूंरेजी।

नाम बदलते हैं उनके केवल,

और बदलते हैं बस स्थान ।

नारी नर पिशाचों के लिए,

बन गयी है बस एक सामान।।

कब तक यों होते रहेंगे हरी,

नारी के ऊपर नित अत्याचार।

मौन न साधिए अब माननीय,

व्यक्त कीजिए अपने विचार।

व्यक्त कीजिए अपने विचार,

कार से कब तक रौंदी जायेगी।

कब तक उसके टुकड़े होंगे,

राहों में कब तक फेंकी जायेगी।

कब तक होंगें केवल वादे,

कब वादों से वह मुक्ति पायेगी।

कब आप उठाओगे कड़े कदम,

कब त्वरित न्याय वह पायेगी।।

- हरी राम यादव, अयोध्या, उत्तर प्रदेश

 लेखक एवं कवि- 7087815074