हिंदी ग़ज़ल - जसवीर सिंह हलधर
Oct 29, 2022, 23:01 IST
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बनो क्यों चाँद रजनी के उगो बन सूर्य से भू पर ।
मिली क्या फूल की कीमत रहे हैं कीमती पत्थर ।
कभी सौंदर्य को तोलो नहीं बल के तराजू में ,
बली का दास है यह तो रहा बलवान का अनुचर ।
जहां में जो लड़े अब तक बचाने लाज मांटी की ,
झुकाता शीश उनके सामने तारों भरा अम्बर ।
कभी नदिया के जल सा साफ क्या तालाब देखा है ,
भले ही फूल पंकज के खिले हों लाख कीचड़ पर ।
कभी सर को झुकाये आपने देखा हिमालय क्या ,
बचाता फूल घाटी के हजारों आंधियां सहकर ।
नहीं यदि आग गाने में भले सुर ताल अच्छी हो ,
तराना बन सकेगा क्या बताओ युद्ध में वो स्वर ।
भले श्रृंगार राजा है रसों का मानते हम सब ,
परंतू ओज का अपना अलग किरदार है " हलधर "।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून