हिंदी ग़ज़ल - जसवीर सिंह हलधर

 | 
pic

बनो क्यों चाँद रजनी के उगो बन सूर्य से भू पर ।

मिली क्या फूल की कीमत रहे हैं कीमती पत्थर ।

कभी सौंदर्य को तोलो नहीं बल के तराजू में ,

बली का दास है यह तो रहा बलवान का अनुचर ।

जहां में जो लड़े अब तक बचाने लाज मांटी की ,

झुकाता शीश उनके सामने तारों भरा अम्बर ।

कभी नदिया के जल सा साफ क्या तालाब देखा है ,

भले ही फूल पंकज के खिले हों लाख कीचड़ पर ।

कभी सर को झुकाये आपने देखा हिमालय क्या ,

बचाता फूल घाटी के हजारों आंधियां सहकर ।

नहीं यदि आग गाने में भले सुर ताल अच्छी हो ,

तराना बन सकेगा क्या बताओ युद्ध में वो स्वर ।

भले श्रृंगार राजा है रसों का मानते हम सब  ,

परंतू ओज का अपना अलग किरदार है " हलधर "।

 - जसवीर सिंह हलधर , देहरादून