हिंदी ग़ज़ल - जसवीर सिंह हलधर
Jul 15, 2022, 23:22 IST
| भूमि है बीमार सी आकाश छोटा हो गया है ।
गोल है भूगोल पर इतिहास छोटा हो गया है ।
हो गया संबंध सीमित फेस बुक मोबाइलों से ,
आदमी का आदमी से भाष छोटा हो गया है ।
मंदिरों में दान से औकात मापी जा रही है ,
भावना का भक्त से अहसास छोटा हो गया है ।
बात को सीधे तरीके से नहीं कहता जमाना ,
गालियों से वर्ण का विन्यास छोटा हो गया है ।
साल को बारह महीने का कलेंडर बोलता है ,
पर न जाने आज कल मधुमास छोटा हो गया है ।
मूल्य परिवर्तित हुए हैं जिंदगी के जिंदगी में ,
गृहस्थ का फैलाव है संन्यास छोटा हो गया है ।
भूख रोटी से अधिक अब साधनों की हो गयी है ,
कार कोठी है मगर आवास छोटा हो गया है ।
रोज "हलधर" लिख रहा है राम जाने अंत क्या है ,
मंच पर तो छंद का विन्यास छोटा हो गया है ।।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून